आदर्श जीवनचर्या

हमारे शरीर में मुख्य रूप से बारह अंग होते हैं| प्राण ऊर्जा चौबीस घंटों में सभी अंगों में जाती है| हर अंग में दो घंटे अधिकतम ऊर्जा का प्रवाह रहता है| इसके ठीक विपिरीत समय में ऊसी अंग में न्यूनतम ऊर्जा का प्रवाह रहता है|

प्रातः तीन से पांच
– फेफड़े
– इसी कारण ब्राह्म्मुहूर्त में ऊठ कर खुली हवा में घूमना चाहिए| प्राणायाम श्वसन से फेफड़े स्वस्थ होते हैं, फेफडो को ऑक्सीजन प्राप्त होती है| इसके रक्त में मिलने से हिमोग्लोबिन आक्सीकृत होता है| जिससे शरीर स्वस्थ ओर स्फूर्तिवान बनेगा|

प्रातः पांच से सात
– बड़ी आँत
– इसी कारण मल त्याग के लिए यह सर्वोत्तम समय है| जो व्यक्ति इस समय सोते रहते हैं, मल त्याग नहीं करते, ऊनका पेट खराब रहता है और कब्ज रहता है| इस समय ऊठ कर योग आसान तथा व्यायाम करना चाहिए|

प्रातः सात से नौ
– अमाशय
– इस समय तक बड़ी आँत की सफाई हो जाने से पाचन आसानी से होता है| अतः इस समय भोजन करना चाहिए| प्रातः भोज करने से पाचन अच्छी तरह से होता है| और हम सैकड़ों पाचन सम्बन्धी रोगों से सहज ही बचे रहते हैं|

प्रातः नौ से ग्यारह
– तिल्ली( स्प्लीन) और पैन्क्रियाज
– इस समय हमारे शरीर में पैंक्रियाटिक रस तथा इंसुलिन सबसे ज्यादा बनता है| इन रसों का पाचन में विशेष महत्व है| अतः जो डायबिटीज़ या किसी पाचन रोग से ग्रस्त हैं, ऊन्हें इस समय तक भोजन अवश्य कर लेना चाहिए|

ग्यारह से एक
– हृदय
– हमारी संवेदनाओं, करुणा, दया तथा प्रेम का प्रतीक है| अतः इस समय भोजन करते हैं तो अधिकतर संवेदनाएं भोजन के स्वाद की तरफ आकर्षित होती हैं| हृदय प्रकृति से मिलने वाली अपनी प्राण ऊर्जा पूर्ण रूप से ग्रहण नहीं कर पता|
एक बजे तक भोजन करने से रक्त परिसंचरण अच्छा होता है| और हम अपने आप को ऊर्जान्वित महसूस करते हैं|

दोपहर एक से तीन
– छोटी आँत
– छोटी आँत का मुख्य कार्ये पोषक तत्वों का शोषण करना था अवशिष्ट पदार्थ को आगे बड़ी आँत में भेजना है| जहाँ तक हो सके इस समय भोजन नहीं करना चाहिए|
इस समय भोजन करने से छोटी आँत अपनी पूरी क्षमता से कार्ये नहीं कर पाती| इसी कारण आज कर मानव में संवेदना, करुणा, दया अपेक्षाकृत कम होती जा रही है|

दोपहर  तीन से पांच
– मूत्राशय (यूरिनरी ब्लेडर)
– इस अंग का मुख्य कार्य जल तथा द्रव पदार्थों का नियंत्रण करना है|

सायंकाल पांच से सात
– किडनी
– इस समय शाम का भोजन कर लेना चाहिए| इसमें हम किडनी और कान से सम्बंधित रोगों से बचे रहेंगे|

रात्रि सात से नौ
– मस्तिष्क
– इस समय विद्यार्थी पाठ याद करें तो ऊन्हें अपना पाठ जल्दी याद होगा|

रात्रि नौ से ग्यारह
– स्पाइनल कॉर्ड
– इस समय हमें सो जाना चाहिए| जिस से हमारे स्पाइन को पूरा आराम मिले|

रात्रि ग्यारह से एक
– गाल्ब्लेडर
– इसका मुख्य कार्ये पित्त का संचय एवं मानसिक गतिविधियों पर नियंत्रण करना है| यदि इस समय जागते हैं तो नेत्र और पित्त सम्बंधित रोग होते हैं|

रात्रि एक से तीन
– लीवर
– लीवर हमारे शरीर का मुख्य अंग है| यदि आप इस समय तक जागते हैं तो पित्त सम्बन्धी विकार होता है| नेत्रों पर बुरा प्रभाव, स्वभाव चिडचिडा तथा व्यक्ति जिद्दी हो जाता है| यदि किसी कारण देर रात तक जागना पड़े तो हर एक घंटे बाद एक गिलास पानी पीते रहना चाहिए|

लीवर से प्राण ऊर्जा वापिस फेफड़ों में चली जाती है|

हमारे जीवन का पहला सुख है निरोगी काया| इसके अभाव में हमारी सारी भाग दौड़ सुखी ना बना सकेगी|

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